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उत्तराखण्ड- नाम बदला, सत्ता बदली लेकिन नही मिली विकास की रफ्तार

उत्तराखंड- उत्तराखण्ड राज्य का जन्म 9 नवम्बर 2000 को हुआ था। राज्य का गठन हुए तक़रीबन 17 साल हो गए हैं नाम के साथ सरकार भी बदली लेकिन देवभूमि को नही मिली विकास की गति। तेज रफ्तार विकास का सपना जैसा जनता ने देखा था वैसे का वैसा ही रह गया है।
15 फरवरी को राज्य में विधानसभा के चुनाव हुए.आइये एक नजर डालें आंकड़ों पर —

राज्य में कुल 70 विधानसभा सीटें हैं जिनमें 55 जनरल,2 अनुसूचित जनजाति,13 अनुसूचित जाति के लिए हैं। राज्य में इस वक़्त 75 लाख मतदाता हैं।इस बार उत्तराखण्ड में 68% वोटिंग हुई है जो की पिछली बार से ज्यादा है। उत्तराखण्ड में सीधा मुक़ाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है जहाँ कांग्रेस मुख्यमंत्री हरीश रावत के नेतृत्व में चुनाव मैदान में है वही बीजेपी के पास पूर्व मुख्यमंत्रियों की फ़ौज खड़ी है.. रमेश पोखरियाल निशंक से लेकर विजय बहुगुणा तक एक से एक बड़े नेता हैं।
कांग्रेस और हरीश रावत के लिए डगर बड़ी मुश्किल है एक तरफ जहाँ खुद मुख्यमंत्री पर स्टिंग आपरेशन और सीबीआई जांच की तलवार लटकी हुयी हैं वहीं विजयबहुग़ुणा के नेतृत्व में पार्टी के कई नामी चेहरे बीजेपी में जा चुके हैं ,करप्शन और बागी नेता कांग्रेस की नाव डुबो सकते हैं। दूसरी तरफ बीजेपी की सबसे बड़ी मजबूती ही चुनाव बाद उसकी कमजोरी बन सकती है.. चुनावों के बाद बीजेपी में मुख्यमंत्री बनने के लिए जोर आजमाइश होगी जहाँ तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों के अलावा भी अन्य बड़े नेता अपना दावा पेश कर सकते हैं। जनता ने अपने मत का प्रयोग कर लिया है,नेताओं और पार्टियों की किस्मत “ई•वी•एम” मशीनों में कैद हो चुकी है अब 11 मार्च को नतीजे आने के बाद ही निर्णय होगा की किसकी सरकार बनेगी।

#जनता_की_बात
सरकार किसी की भी बने जनता के लिए काम करे,जो ग्रामीण इलाके हैं वहां बिजली,रोड की व्यवस्था हो और प्रदेश की आम जनता विकास से वंचित है उसके विकास के लिए कार्य हो।

 

न्यूज सोर्स- http://socialshaktinews.in

Written by – ganesh joshi 

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