Editorial

किसानों की आत्महत्या उत्तराखण्ड के अस्तित्व के लिए खतरा, इन मौतों से कब सबक लेंगे हम?

नई दिल्ली: हेमराज चौहान: उत्तराखंड में पहाड़ी इलाकों में कर्ज से परेशान होकर किसान की आत्महत्या की खबर जबसे सुनी है तब से ये ही सोच रहा हूं कि इससे पहले ऐसी ख़बर कब सुनी या पढ़ी बहुत याद करने के बाद इस निर्णय पर हूं की कम से कम जबसे मैंने होश संभाला और पिछले 15 सालों से अखबार पढ़ना शुरू किया कभी ऐसी खबर नहीं देखी. लेकिन पिथोरागढ़ ज़िले के बेरीनाग में एक किसान की कर्ज से परेशान होकर खुदकुशी की खबर ने सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या पहाड़ो में भी इस तरह मौत ने पैर पसारना शुरू कर दिया है. अभी तीन महीने पहले द्राराहाट के गांव में भूख से बच्ची की मौत ने सबको चौंका दिया था. तब सरकार से लेकर समाज के लोगों पर सवाल हुए, पर बदकिस्मती से ये मुद्दा राजनीति के कारण दबा लिया गया. ऐसी खबरें सरकारों को मौका देती हैं कि वो राज्य मेें हो रही इन मौतो से सीखकर जनता की भलाई के लिए कदम उठाएं,पर दुर्भाग्य से राज्य में जिसकी भी सरकार हैं या रही हैं उनका ध्यान जनता की जगह और यहां को माफियाओं और कारोबारियों की भलाई पर ज्यादा है. समय समय पर सरकार द्वारा लिए जाने वाले फैसले इसकी पुष्टि करते हैं. पहाड़ी इलाकों में बहुत कम जगह पर खेती अच्छी होती है क्योकि पानी से लेकर ऊपजांउ मिट्टी बहुत कम जगहों पर है. जिस कारण लोग पलायन को मज़बूर हैं. जिन जगहों पर खेती ठीकठाक हैं वहां के लोग भी नुकसान के कारण खेती छोड़ रहे हैं.

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