लखनऊ : 12-03-2018 : प्रदेश की योगी सरकार भले ही सरकारी अस्पतालों की हालत में सुधार का दावा कर ले मगर हकीकत कुछ और ही है । इसकी बानगी आप यहां देख सकते हैं । राजधानी के सरकारी अस्पतालों में मरीजों का भारी दबाव है। फिर वह चाहे केजीएमयू, बलरामपुर हो या राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट सभी जगह जांच और ऑपरेशन के लिए मरीजों को लम्बा इंतजार करना पड़ रहा है। 

लखनऊ के अस्पतालों में कतारों में मरीज, तत्काल वाले भी महीनों की वेटिंग पर

 

सिटी स्कैन, एमआरआई समेत अन्य जरूरी जांचों के लिए 15 से 20 दिन की वेटिंग है। वहीं, न्यूरो और हॉर्ट जैसी गंभीर बीमारी के ऑपरेशन के लिए चार से पाच महीने के लंबे इंतजार के बाद नंबर आ रहा है। जबकि, इन बीमारियों में मरीज को इलाज की तुरंत जरूरत रहती है। हाईकोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों का इलाज सरकारी अस्पतालों में कराने का निर्देश तो दे दिया पर अव्यवस्थाओं के बीच यहा सही-सलामत इलाज करवाना किसी जंग लड़ने से कम नहीं है। दवा और जांच के लिए एक जगह से दूसरी जगह भटकना राजधानी के सरकारी अस्पतालों की पहचान बन गया है। अस्पताल कोई भी हो पर डॉक्टरों द्वारा जो दवाएं लिखी जाती हैं, उसमें से आधी अस्पताल में संचालित मेडिकल स्टोर पर मिलती ही नहीं हैं। जाच के लिए भी काफी दौड़ना पड़ता है। जिसके कारण लोग सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाने से कतराते हैं।

केजीएमयू में वेटिंग

सीटी स्कैन – 10 से 12 दिन

एमआरआइ – 18 से 20 दिन

रेडियोथेरेपी – 15 से 18 दिन

हॉर्ट ऑपरेशन – 4 से 5 महीने

न्यूरो ऑपरेशन – 2 से 3 महीने

राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट में वेटिंग

सीटी स्कैन – 7 से 8 दिन

एमआरआइ – 15 से 18 दिन

रेडियोथेरेपी – 30 से 32 दिन

हॉर्ट ऑपरेशन – 2 से 3 महीने

न्यूरो ऑपरेशन – 2 से 3 महीने

केजीएमयू सीएमएस डॉ. एसएन शखवार का कहना है कि कोर्ट की यह पहल सराहनीय है। सरकारी कर्मचारियों को अपना इलाज सरकारी अस्पताल में कराना चाहिए। मरीजों की बड़ी तादाद के बाद भी यहा अच्छा इलाज मिलता है। वहीं, राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट निदेशक डॉ. दीपक मालवीय का कहना है कि बले ही बड़े ऑपरेशन की वेटिंग चल रही है पर इमरजेंसी वाले मरीजों को जल्द से जल्द ऑपरेशन किया जाता है। हालांकि डॉ. एसएन शखवार के दावों में कितनी हकीकत है यह आप खुद किसी सरकारी अस्पताल में जाकर देख सकते हैं