Editorial

उत्तराखंड की पहली महिला जागर गायिका को मिला पद्मश्री सम्मान

हल्द्वानी-उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में देवताओं का स्तुति गान जागर के रूप में किया जाता है। धार्मिक अनुष्ठानों में जागर गाकर ही देवताओं की पूजा की जाती है। सदियों से पहाड़ में जागर की परम्परा को पुरुष ही गाते थे, लेकिन प्रदेश में एक महिला ने जागर गाकर ना सिर्फ पुरुषों की इस परम्परा को तोड़ा, बल्कि जागर पर शोध कर इसे नई उचाइयों तक पहुंचाया। वो लोकगायिका है बसंती बिष्ट ।
बसन्ती बिष्ट की मां जागर गाती थी और बचपन से ही बसन्ती बिष्ट भी जागरों को गुनगुनाने लग गई। बसन्ती की आवाज में अलग सा आकर्षण था, लेकिन पहाड़ की सुरम्य वादियों में गुनगुनाने के अलावा आवाज दबकर रह गई। कम उम्र में शादी होने के बाद बसन्ती बिष्ट घर परिवार की जिम्मेदारियों में खो गई।कई वर्षो तक वे गांव में रही लेकिन सेना में कार्यरत अपने पति के साथ कुछ सालों के बाद वे जलान्धर गई और वहां उनके पति ने बसन्ती बिष्ट की को पहचाना और शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दिलवाई।

पांच सालों तक शास्त्रीय संगीत सीखने के बाद जब वे देहरादून लौटी

धीरे धीरे बसन्ती बिष्ट की जादुई आवाज लोगों को आकर्षित करने लगी. इसी बीच बसन्ती बिष्ट ने आकाशवाणी में भी गाना शुरू कर दिया। आकाशवाणी में बसन्ती बिष्ट के जागरों को प्राथमिकता दी गई, जिन्हें काफी सराहा भी गया. बसन्ती बिष्ट के जागर जब आकाशवाणी से गूंजने लगे तो पुरुषों ने इसका विरोध कर दिया। उनके मंचों से जागर गाने पर इसका कुछ लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया। जागर उत्तराखंड में शास्त्रीय संगीत के रूप में जाना जाता है, जो अब धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है। पहाड में जागर गाने और इसकी जानकारी रखने वाले बहुत कम लोग रह गये है।

बसन्ती बिष्ट ने ना सिर्फ जागरों को अपनी जादुई आवाज दी बल्कि अब वे इस विधा में शोध भी कर रही हैं। मां नंदा पर जागरों को उन्होंने एक किताब के रूप में संजोया है। बसन्ती बिष्ट कहती है कि पहाड़ में आज अदृश्य शक्तियां (परियां) विद्यमान है जिनपर वे शोध कर रही हैं। उत्तराखंड के उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली और कुमाऊं के कुछ जिलों में अछरियों (परियां) का वर्णन जागरों में मिलता है।बसन्ती बिष्ट कहती है कि जागर में आध्यात्म, पुराण, वेद, शास्त्र सहित पहाड़ की लोकपरम्पराएं, मान्यताओं का जिक्र है।बसन्ती बिष्ट ने जागर गायन की दुनिया में अपना अलग मुकाम हासिल कर लिया है। सिर्फ जागर ही नहीं बल्कि पारम्परिक वेशभूषा में बसन्ती बिष्ट जब मंचों पर आती हैं तो पहाड़ की संस्कृति की झलक जीवंत हो उठती है।

 

 

 

 

 

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हेमराज चौहान , टीवी पत्रकार

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