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क्या ! मां के अंतिम संस्कार के लिए घर को ही जला डाला !

ओडिशा: कालाहांडी में फिर इंसानियत शर्मसार हुई एक विधवा माँ की लाश को तीन बेटियों ने दिया।  दाना माझी की घटना अभी लोगों के जेहन से उतरी भी नहीं है कि ओडिशा के कालाहांडी की एक और घटना ने मानवता को फिर से शर्मसार किया है। यहां प्रशासन और गांव के लोगों से मदद नही मिलने पर तीन विधवा बेटियों ने अपनी मां को कंधा दिया और अंतिम संस्कार के लिए छत की लकड़ियों को ही चिता में लगा दिया। करीब एक महीने पहले दानामांझी ने अपनी पत्नी के शव को कंधे पर ढोया था।

दानामांझी की पत्नी तो उस दिन मरी ही थी लेकिन उस दिन ही उनकी पत्नी के मरने के साथ साथ सरकारी तंत्र भी मर गया था। आज फिर कालाहांडी में इंसाननियत शर्मसार हुई है। कालाहांडी में समय मर गया सारोकार मर गया और इसी तस्वीर के साथ फिर दोबारा सरकारी तंत्र मर गया है।  इस घटना को  देखकर लगता है कि ओडिशा में सरकार होने का कोई अर्थ नही है।  एक उल्टी खाट है, खाट पर पड़ी एक विधवा माँ की लाश है, और उस लाश को कंधा देती उस विधवा की तीन विधवा बेटियां। माँ का अंतिम संस्कार करना ज़रूरी था लेकिन दुर्भाग्य का चोला ओढे इन तीनों बेटियों के पास लकड़ियां खरीदने तक के पैसे नही थे। कुछ चीज़े साथ में थीं वो थीं बदन पर मैले कुचैले कपड़े , पेट में लगी भूख की आग जो कुछ देर सुलगती है और फिर शांत हो जाती है।माँ का दाह संस्कार करने के लिए जब कहीं से कोई मदद नहीं मिली तो बेटियों ने माँ की देह को बाप के उस आशियाने में झोंक दिया जिसमें उनका बचपन बीता था और वर्तमान भी माँ के साथ उसी आशियाने में बीत रहा था। माँ का आंचल छीन गया तो अब मकान पर फूंस का क्या मतलब? ये कैसी मजबूरी जिसने माँ को भी छीन लिया और घर की छत भी उजाड़ दी? शर्म आती है ये कहते हुए कि ये एक विकासशील और प्रगतिशील सोच वाले हुक्मरानों का प्रदेश है। माँ को जलना था वो जल गई और सरकारों को रहना है वो आगें भी रहेंगी।ओडिशा भी रहेगा वहाँ की कलाकृति भी रहेगी। गौरव रहेगा गौरवगान भी रहेगा और इन सबके बीच दानामांझी भी रहेंगे और ये बेटियां भी रहेंगी ,उजड़ी झोपड़ियों के पास बैठी आपको और हमको इन्हीं सूनी निगाहों से तांकती रहेगी जिनकी जिन्दगी उनकी मां की सांस के बंद होते ही उजड़ गई है।

 

 

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रिपोर्ट- मोहित ठाकुर

हल्द्वानी लाइव

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