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देवभूमि की बेटी शीतल बिष्ट की इसरो में एंट्री

देहरादून: बेटियों को हमारे समाज में कई लोग बोझ समझते है लेकिन बेटियों ने पिछले एक दशक में अपनी कामयाबी से उन लोगों के मुंह में तमाचा मारा है। ये तमाचा उनके हाथ नहीं उनकी कामयाबी मार रही है और अपने देश व प्रदेश का नाम रोशन कर रही है। उत्तराखण्ड में बेटियां हमेशा से अपना वर्चव साबित करती रही है। उनकी कामयाबी की कहानी बुलेट ट्रेन की गति से आगे बढ़ रही है। उत्तराखण्ड की बेटी अब इसरो में आपना दम दिखाएगी। दून की शीतल बिष्ट इसरो में वैज्ञानिक बनकर उत्तराखंड का नाम रोशन किया है। शीतल मूलरूप से पौड़ी जिले के गगवाड्स्यूं पट्टी के बणगाव मल्ला की शीतल का परिवार दून के क्लेमनटाउन में रहता है। शीतल के पिता संतोष कुमार बिष्ट सेना से रिटायर्ड हैं और मां अंजना ग्रहणी हैं। शीतल की पढ़ाई दून में हुई है। स्कूल के बाद उन्होंने ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय से कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया है। इस दौरान कैंपस सलेक्शन  विप्रो व इंफोसिस में हुआ लेकिन उन्होंने लंबा सफर तय करने का मन बनाया था तो एमटेक के लिए जॉब से मुंह फेर लिया।

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इस बीच इसरो से आइसीआरबी परीक्षा का फार्म भरा और पहले ही प्रयास में उन्हें सफलता मिल गई। उन्होंने हाल ही में इसरो में ज्वाइन कर लिया है। कुछ ही दिनों बाद उन्होंने जीसेट-9 की ऐतिहासिक लाचिंग इसरो के कंट्रोल रूम में बैठकर लाइव देखी। शीतल का कहना है कि उन्होंने कभी भी इसरो के बारे में नहीं सोचा था। बस अच्छा करना चाहती थी। इसरो में ऐसे अनेक प्रेरक व्यक्तित्व हैं जिनके बीच उन्हें रहने का मौका मिला है। शीतल के अलावा दो और उत्तराखंडी युवा इसरो में वैज्ञानिक बनकर पहुंचे हैं। इनमें बागेश्वर के शैलेंद्र जोशी और चंबा की प्रतिभा नेगी शामिल हैं। ऑल इंडिया स्तर पर होने वाले इसरो की परीक्षा में सिर्फ 44 युवाओं को सफलता मिली थी।

 

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