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पहाड़ के आंचल में गूंजता कुमाऊं वाणी

 


मुक्तेश्वर: एक दौर था जब लोग रेडियो को अपने से अलग ही नहीं होने देते थे, लेकिन आज के आधुनिक दौर ने रेडियो को लोगों से दूर कर दिया है। बेहद कम ही लोग होंगे जो पहले की तरह रेडियो का इस्तेमाल करते हो। बात मुक्तेश्वर स्थित कुमाऊं वाणी की करें तो उसने पिछले कुछ समय से लोगों को अपनी ओर खींचा है। नैनीताल जिले के लोग आधुनिकता के दौर में भी कुमाऊं वाणी को पसंद करते है। आपको जानकारी दे दे कि 11 मार्च 2010 को तत्कालीन राज्यपाल मार्गरेट अल्वा ने रामगढ़ मुक्तेश्वर में कुमाऊँ वाणी का शुभारम्भ किया था। इसका उद्देश्य कुमाउंनी भाषा और संस्कृति का प्रचार प्रसार करना था। कुमाऊँ वाणी अल्मोड़ा रानीखेत, बागेश्वर, चम्पावत, कौसानी और कई क्षेत्रों में रेडियों कुमाऊँ वाणी सुना जाता है।

वही हल्द्वानी लाइव से बात करने पर कुमाऊँ वाणी के एडिटर नारायण सिंह मेहता ने बताया कि वह आठ साल से रेडियो कुमाऊं वाणी में काम कर रहे है। हिमालय की गोद में अकेला ही एक रेडियो कुमाऊँ वाणी है। जो लोगो को मनोरंजन से साथ ज्ञान भी बढ़ाने में सहायक है। उन्होंने बताया कि इसे कुमाऊंनी भाषा में ही चलाया जाता है जिसकी रेंज 10 किमी तक रहती हैं। उन्होंने बताया की पहाड़ो में 70% आबादी पहाड़ी भाषा समझती है। इसलिए हम हमेंशा से कुमाऊनी भाषा में प्रोग्राम करने की कोसिश करते है। कुमाऊंनी भाषा में ज्यादा जोर देते है। इससे हमारी पहाड़ी संस्कृति बरकार रहे। उन्होंने बताया हम हर दिन लोगों को कृषि, खेल, शिक्षा, मनोरंजन की जानकारी  रेडियो के जरिये सेवाएं देते है। आज पुराने दौर में लोग पल भर के लिए रेडियो से अलग नहीं रह सकते थे लेकिन आज के दौर में युवा रेडियो से कोसो दूर है। वही आज स्मार्टफोन की दुनिया ने रेडियो के युवा पीढ़ी से दूर कर दिया है। उन्होंने बताया कि फोन से छात्रों का वक्त बर्बाद होता है लेकिन रेडियो के माध्यम से उनका ज्ञान बढ़ सकता है।

 

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