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भगवान का वहीखाता

कभी- कभी
लगता है जैसे
उसका वहीखाता
हमारे भी हिसाब-किताब
पर रीझ जाता है
छोटी – छोटी खुशियाँ
ही सही , पर जब
पूरी होतीं हैं –
लगता है जैसे
निराशाओ के
गर्म रेत में
आशाओं की ठंडी
कोक-पेप्सी या डियु
मिल गई हो !
ठिठुरी हुई उदासी को
जैसे सौगातो का
मखमली कंबल
और गर्म चाय की
प्याली मिल गई हो !
ठहरे हुए कदमो
की चाल को
झूमते बादलो ने
यूँ ही खनका दिया हो !
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