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रेल बजट में एक बार फिर देवभूमि को निराशा

हल्द्वानी : देवभूमि में पहाड़ों पर रेलगाड़ी को गति देने की उम्मीद एक बार फिर धराशायी हो गई है। केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2018-19 के रेल बजट में न ही पूर्व की ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन, चारधाम को रेलवे नेटवर्क से जोड़ने समेत गढ़वाल व कुमाऊं मंडलों में चल रही महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को धरातल पर उतारने वाली कोई व्यवस्था नही बनी है । अलबत्ता, रेल यात्रियों की सुरक्षा और स्टेशनों के आधुनिकीकरण में जरूर उत्तराखंड को कुछ राहत मिलने की उम्मीद है।

रेल परिवहन सेवा के लिहाज से उत्तराखंड काफी पिछड़ा हुआ है। प्रदेश के लोग हर बार रेल बजट पर आस लगाए रहते हैं पर पिछले लंबे समय से ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है। राज्य गठन के बाद से उम्मीदें तो जगाई गईं, लेकिन उम्मीदों की रेल जमीन पर कब सरपट दौड़ेगी, इसे लेकर बजट में रोडमैप नदारद है। नए वित्तीय वर्ष के रेल बजट में नई परियोजनाओं को लेकर रेल मंत्रालय ने उत्तराखंड से हाथ खींच लिए।
भूमि अधिग्रहण अभी काफी दूर की कौड़ी लग रहा। बजट में इस अहम योजना पर मंत्रालय की सुस्ती निराशा पैदा कर रही है। जबकि, केंद्र की मोदी सरकार ने तीन वर्ष पहले रेल बजट में चार धामों को रेल नेटवर्क से जोड़ने का इरादा जताया था, लेकिन इस पर फिलहाल चुप्पी साध ली गई है।

चूंकि, पिछले बजट के समय उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव की आचार-संहिता लगी हुई थी, इसलिए तब कुछ नहीं मिला। ऐसे में उम्मीद का जा रही थी कि इस बार रेल बजट में प्रदेश को जरूर बेहतर मिलेगा, लेकिन वित्त मंत्री की बेरुखी भारी पड़ी। पर्वतीय राज्य पर मेहरबानी नहीं हुई और मुसाफिरों की राह मुश्किल ही रह गई।
ऑनलाइन बुकिंग को बढावा –
ऑनलाइन टिकट बुकिंग पर सर्विस टैक्स माफ होने से इस ओर यात्रियों का जोर बढ़ेगा। रिजर्वेशन की लाइन के झंझट से मुक्ति तो मिलेगी ही, समय और पैसे दोनों की बचत होगी।

 

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