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सोशल मीडिया के जरिए उत्तराखंड की लोक-भाषा व लोक संगीत को लोकप्रिय बना रही युवा पीढी

हल्द्वानी :  गणतंत्र दिवस पर प्रधानमंत्री आवास पर उत्तराखंडी लोक कला का प्रदर्शन हो या फिर गंणतंत्र दिवस पर उत्तराखंडी की झांकी । उत्तराखंड की लोक कला को सभी मौको पर सराहा गया है। जिन लोकगीतों के बारे मे कभी कहा जाता था कि वे धीरे-धीरे इतिहास में समा रहे है, उन्हे आज की युवा पीढी ने अति लोकप्रिय बना दिया है।

उत्तराखंड के लोक कलाकार और गीत इन दिनो स्टेज से लेकर यूट्यूब तक छाए है। श्रीनगर गढ़वाल के गायक अमित सागर का गाया गीत ‘चैता की चैत्वाल’ यूट्यूब पर 75 लाख से अधिक बार देखा जाने वाला उत्तराखंड का पहला लोकगीत बन चुका है। अमित सागर के इस गीत ने किशन महिपाल के सुपरहिट गीत ‘फ्योलडि़या’ को भी पीछे छोड़ दिया, जिसे यूट्यूब 64 लाख से अधिक हिट मिले है।

असल में उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक स्वर्गीय चंद्र सिंह राही के सुप्रसिद्ध ‘आछरी जागर’ को ही अमित सागर ने नए अंदाज मे तैयार किया है। गीत का जादू शुरू से ही लोगो के सिर चढ़कर बोल रहा था। सोशल मीडिया, सामाजिक आयोजनो और कार्यक्रमो मे इस गीत की धूम है। हर बोली-भाषा के लोग गीत को पसंद कर रहे है। इस प्रसिद्धि के बाद उलाराखंड के उभरते गायक अमित सागर को दुनिया के मशहूर म्यूजिक बैड ‘कलोनिअल कजिंस’ के साथ काम करने का मौका मिला है।

इधर, कुमाऊंनी लोक गायक पप्पू कार्की ने ‘मधुली’ गीत को जागर की तर्ज पर गाकर नया प्रयोग किया है। तीन दिन मे इस गीत को 55 हजार हिट मिल चुके है। उभरती हुई गायिका प्रियंका मेहर के भी एक गीत को 8 दिन के भीतर 10 लाख से अधिक लोगों ने देखा था। इनके अलावा भी अन्य कई युवा सोशल माध्यम और यूट्यूब के द्वारा धुम मचा रहे हैं । इस तरह सोशल माध्यम अपनी जड़ो से दूर रहने वाले युवाओ को लोक-भाषा व लोक संगीत से भी जोड़ रहा है।

उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों मे देवताओ को खुश करने के लिए जागर लगाकर ईष्ट देव से मनौती मांगी जाती है। घर के आंगन मे धूनी जलाई जाती है। जागर के दौरान  देवताओ का आह्वान किया जाता है। ‘जगरिया’ जागर का मुख्य पात्र होते हैं, जो हुड़का, ढोल और दमाऊ की थाप पर देवताओ की कथा करते हैं ।

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