Editorial

हिंदी पत्रकारिता में बढ़ती चुनौतियां

हल्द्वानी: आज हिन्दी पत्रकारिता दिवस है।1826 में आज ही के दिन पं0 युगल किशोर शुक्ल ने कोलकाता से पहले हिन्दी अखबार ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन आरम्भ किया था। उसके बाद गणेश शंकर विद्यार्थी ने हिंदी पत्रकारिता को नया आयाम दिया। उन्होंने पत्रकारिता धर्म के खातिर अपना बलिदान तक दे दिया। पत्रकार को हमेशा विपक्ष में होना चाहिए इस लाइन को उनके बाद राजेंद्र माथुर,एसपी सिंह, प्रभाश जोशी ऐसे कुछ नाम है जिन्होंने बखूबी अंजाम दिया।वर्तमान दौर में ये कुछ नाम धारधार और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए जाने जाते हैं। उसके बाद पत्रकारिता धीरे धीरे पेशा कम कारोबार बन गया, विज्ञापन और टीआरपी के फेर में नए नए प्रयोग शुरू हो गए जो समय थे साथ ज़रुरी भी हैं लेकिन हिंदी पत्रकारिता करने वाले बड़े नामों ने इसके साथ ही पत्रकारिता को बुनियादी तत्वों को धीरे धीरे पूछ कर दिया।आज पत्रकार विपक्ष की जगह सहयोगी की भूमिका में है और प्रवक्ता का काम कर रहा है।जो जो चीजें पत्रकारिता करते समय बतायी और समझायी जाती है वो फील्ड में उतरते ही किनारे रखने को मज़बूर कर दिया जाता है। नौकरी की अनिश्चितता में वो कहीं खो रहा है और रोजी रोटी की चिंता में डूबा है। लेकिन अभी भी कुछ पत्रकार लोग अपने सीमित अधिकारों के बीच बेहतरीन काम कर रहै हैं और भविष्य में पैनेपन की पत्रकारिता की आस जगाती है।आज ज्यादातर पत्रकार टाइपिस्ट की भूमिका में है और कॉपी पेस्ट जर्नलिज्म कर रहे हैं.पर मेरा मानना है कि वो पत्रकार अपना बेस्ट कर रहे हैं जो वो कर सकते हैं।उन्हें कुछ और भी करने को दिया जाएगा वो करेंगे।आज सोचना उन्हें है जिनके हाथ में अपनी पीढ़ी के सामने मिसाल कायम करने का मौका है।तय उन्हें करना है कि वो गणेश शंकर विद्यार्थी के दिखाए रास्ते पर चलते है या उद्योगपतियों और अपने हित साधने वाले मालिकों के आदेश मानते हैं? फिर भी एक पत्रकार के तौर पर मुझे पूरा भरोसा है कि हिंदी पत्रकारिता और उसकी अगुवाई करने वाले अपने लिए रास्ता बना लेगें।

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