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क्रिकेट के मैदान पर उत्तराखण्ड एक्सप्रेस के नाम से विख्यात हुई देवभूमि की बेटी मीनाक्षी

हल्द्वानी: पंकज पांडे: क्रिकेट को लेकर देश में दिवानगी कोई सीमा नहीं है। हर घर में एक ऐसा युवा जरूर होता है जो क्रिकेटर बनने के सपने देखता हो। ये खेल है ही ऐसा जो देश को एक बंधन पर जोड़े रखता है। उत्तराखण्ड भी क्रिकेट प्रतिभाओं के लिए धनी रहा है। भारतीय टीम में उत्तराखण्ड के कई खिलाड़ी अपनी जगह पक्की कर चुके हैं। इस लिस्ट में मनीष पांडे का नाम सबसे पहले आता है। वहीं पवन नेगी, उन्मुक्त चंद, आर्यन जुयाल, ऋषभ पंत और कमलेश नगरकोटी ने भी क्रिकेट के मैदान के जरिए उत्तराखण्ड का नाम रोशन किया है। उत्तराखण्ड के बच्चे भारतीय क्रिकेट पुरुष टीम ही ही नहीं बल्कि महिला टीम में भी देश का नाम रोशन कर रहे है। एकता बिष्ट और मानशी जोशी ने जो किया वो भारतीय क्रिकेट इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जा चुका है। अब इस लिस्ट में आप हल्द्वानी शहर की मीनाक्षी को भी जोड़ लिजिए जिसे देखकर हर कोई कहता है कि ये लड़की भारतीय टीम की नीली जर्सी जरूर पहनेगी।

कौन है मीनाक्षी जोशी

मैच के दौरान मीनाक्षी

हल्द्वानी केंद्रीय विद्यालय की 8वी कक्षा में पढ़ने वाली तेज गेंदबाज मीनाक्षी जोशी (11 साल) ने अंडर-14 क्रिकेट टूर्नामेंट में हर किसी को अपना दिवाना बना दिया। मीनाक्षी के साहस की हर किसी ने तारीफ की। टूर्नामेंट लड़कों का था लेकिन आग मिनाक्षी की गेंद निकल रही थी। मीनाक्षी ने प्रतियोगिता में विकेट तो केवल 2 लिए लेकिन उसने अपनी प्रतिभा से दिखा दिया की वो देश की अगली झूलन गोस्वामी बनने का माद्दा रखती है। मूल रूप से देवीधुरा रहने वाली मीनाक्षी ने 9 साल की छोटी उम्र में भी ठान लिया था कि उसे क्रिकेटर बनना है। मिनाक्षी हल्द्वानी की कोल्ट्स एकेडमी में एक साल से क्रिकेट अभ्यास कर रही है।

कैसे हुए क्रिकेट करियर की शुरूआत

मिनाक्षी के पिता का नाम त्रिलोचन जोशी है। वहीं माता का नाम सरोज जोशी है। पिता फौज से रिटायर है तो देश सेवा की भावना बचपन से ही दिल में बसी हुई थी। मिनाक्षी बताती है कि खेलकूद का बचपन से शौक था। भाई स्कूल की ओर क्रिकेट खेलता था उसे देखते-देखते उसने भी क्रिकेट सिखने के लिए भाई से कहा। बहन को आगे बढ़ता देख भाई कैसे मना करता तो उसने अपनी बहन के सपने को अपना बना दिया। जैसे-जैसे मिनाक्षी बढ़ी होती गई इस सपने और अभ्यास को केवल भारतीय टीम की नीली जर्सी दिखाई देने लगी। मीनाक्षी कहती है कि मैने पहला टूर्नामेंट 11 साल की उम्र में खेला था। आज भी मुझे याद है कि वो अंडर-16 का टूर्नामेंट था मै बहुत नर्वस थी लेकिन मेरे परिवार और एकेडमी ने काफी सपोर्ट किया। 

लेदर की बॉल कमर पर लगी

मीनाक्षी का क्रिकेट करियर अभी काफी छोटी है लेकिन उसने यहां तक पहुंचने के लिए काफी दर्द भी सहा है। प्रैक्टिस के दौरान मीनाक्षी को एक बार गेंद कमर पर लग गई। वो घायल हो गई थी। बॉल करना उसके लिए मुश्किल हो रहा था लेकिन क्रिकेट के प्रति पागल पन उसे आराम करने की इजाज्त नहीं दे रहा था। मीनाक्षी ने बताया कि रनअप लेने और दौड़ते ही कमर पर दर्द होने लगता था। पहले मैने ध्यान नहीं दिया लेकिन वो बढ़ता जा रहा था। फिर एकेडमी के कोच (जिनसे मीनाक्षी भैया बोलती है) ने उसे आराम करने की सलाह दी। क्रिकेट से दो महीने दूर रहने को मीनाक्षी अपनी जिंदगी का सबसे बुरा दौर कहती है।

क्या कहते है कोच

मीनाक्षी के कॉल्ट्स एकेडमी के कोच दीपक मेहरा, आन्नद बिष्ट और मनोज भट्ट कहते है कि मीनाक्षी एक नेचुरल गेंदबाज है। वो छोटी सी उम्र में क्रिकेट की बारिकियों सो अच्छी तरह से समझती हैं। उन्होंने बताया कि जब खिलाड़ी ने अपना लक्ष्य निर्धारित कर लिया हो तो कुछ ज्यादा बताने की जरूरत नहीं होती है। हम चाहते है कि मीनाक्षी जिस गति से आगे बढ़ रही है वैसे ही अभ्यास करें। मीनाक्षी के अंदर एक ललक है जो हर किसी को उसकी गेंदबाजी में दिखाई देती है। एकेडमी और देखने वाले लोग उसे भारत की अगली झूलन गोस्वामी कहते हैं।

माता-पिता का सपोर्ट 

मीनाक्षी कहती है कि पापा-मम्मी ने आजतक कभी मुझे क्रिकेट खेलने से ही रोका। आज मैं क्रिकेटर बनने का सपना देख रही हूं तो मेरे मम्मी -पापा के वजह से ही मुमकिन हुआ है वो बोलती है कि मम्मी ने तो साफ कह दिया है कि तू क्रिकेट खेलना कभी मत छोड़ना। मीनाक्षी सचिन तेंदुलकर, मिताली राज और झूलन गोस्वामी को अपना आदर्श मानती है।

लड़के भी डरते है मीनाक्षी की गेंदों से 

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