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उत्तराखंड के विज्ञानी डॉ केके पांडेय को मिला भारत में पहला और दुनिया में 90वां स्थान

भारत में पहले और दुनिया में 90वें नंबर पर उत्तराखंड के विज्ञानी डॉ केके पांडेय

हल्द्वानी: उत्तराखंड प्रदेश में पढ़ाई लिखाई को हमेशा से ही एक सकारात्मक और बेहतर दृष्टि से देखा गया है। पढ़ाई के क्षेत्र में उत्तराखंड से निकल कर भारत देश और विश्व में पहचान बना रहे युवाओं और महानुभावों की खबरें हमें आए दिन देखने सुनने को मिल जाती हैं। चाहे खेल कूद के मैदान हो, कला संबंधी क्षेत्र हो या कठिन से कठिन परीक्षाओं को पास करने की बात, हमारा राज्य कहीं भी चूकने को तैयार नहीं है।

हाल ही में चंपावत के डॉ केके पांडेय को मिले सम्मान ने एक बार फिर उत्तराखंड का सीना चौड़ा कर दिया है। दरअसल अमेरिका की विश्व प्रसिद्ध स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने दुनिया के शीर्ष विज्ञानियों की सूची जारी की है जिसमें चंपावत के मूल निवासी डॉ केके पांडेय को भी स्थान मिला है। पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंस नामक जर्नल में प्रकाशित इस लिस्ट में विश्व के प्रख्यात विज्ञानियों का नाम शामिल है।

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डॉ पांडेय को इस लिस्ट में भारत के अंदर पहली जबकि विश्व में 90वीं रैंकिंग मिली है, उन्हें यह उपलब्धि फॉरेस्ट्री के विषय में प्राप्त हुई है। इस लिस्ट को विज्ञानियों द्वारा शोध पत्रों के आधार पर तैयार किया जाता है। डॉ कृष्ण कुमार उर्फ केके पांडेय मूल रूप से चंपावत के पास स्थित लमाई गांव के रहने वाले हैं। केके पांडेय ने अपनी इंटरमीडिएट तक की संपूर्ण पढ़ाई चंपावत से ही हासिल की है। कुमाऊं विश्वविद्यालय से स्नातक और परास्नातक करने के बाद उन्होने डीएसबी नैनीताल से 1990 में भौतिकी में डॉक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की है।

डॉ केके पांडेय ने विज्ञान के क्षेत्र में नामी विज्ञानी रहे डॉ डीडी पंत से भी शिक्षा प्राप्त की है। मौजूदा समय में डॉ पांडेय भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद में वरिष्ठ विज्ञानी के तौर पर कार्यरत हैं। बता दें कि वे इससे पहले 2015 में संयुक्त राष्ट्र के एनवायरनमेंट इफेक्ट्स असेसमेंटपैनल के एक सदस्य भी रह चुके हैं।

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उत्तराखंड राज्य के लिये यह एक बेहद सकारात्मक समय है क्योंकि अभी हाल ही में अल्मोड़ा के तरूण बेलवाल को भी एक यूरोपीय यूनिवर्सिटी द्वारा असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर चुना गया था। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है और अब निरंतर ही यहां के लोग इस बात को साबित करते आ रहे हैं।

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