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प्रदूषण से पृथ्वी को बचाने के लिए खोजने होंगे उपाय नहीं तो हालात और हो सकते हैं खराब…

प्रदूषण मौजूदा वक्त में सबसे ज्यादा परेशानी खड़ा कर रहा है। इंसानों में बीमारी के अलावा ये धरती के लिए खतरनाक साबित होता जा रहा है। मैदानी इलाकों में प्रदूषण की मात्रा काफी होती है और इससे अब हिमालयों में असर पड़ने लगा है। 22 अप्रैल को पूरी दुनिया विश्व धरती दिवस मना रही है लेकिन कुछ ऐसी बातें भी सामने आ रही है, जो बताती है कि अभी धरती के लिए कुछ करने का वक्त है नहीं तो आने वाले दिन और गंभीर हो सकते हैं।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों की ओर किए शोध में यह बात सामने आई है कि यूरोपीय देशों में बढ़ते प्रदूषण का असर हिमालय पर भी पड़ रहा है। पश्चिमी विक्षोभ के जरिए भारी मात्रा में कार्बन-डाई-आक्साइड हिमालयी क्षेत्रोें में पहुंच रही है। इससे हिमालय का पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ रहा है।

पश्चिमी विक्षोभ के साथ ही देश में प्रदूषण स्तर में आ रहे बदलावों के चलते हिमालयी के पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ रहे प्रभावों का अध्ययन करने को लेकर हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों की ओर से गंगोत्री ग्लेशियर के निकट चीड़बासा और भोजबासा में दो मानीटरिंग स्टेशन की स्थापना की है।

इसके जरिए हिमालयी क्षेत्रों मेें कार्बन समेत अन्य गैसों के प्रभावोें का अध्ययन किया जा रहा है। शोध में जुटे वैज्ञानिकों का कहना है कि उच्छ हिमालयी क्षेत्रों में कार्बन की मात्रा बढ़ रही है। यह पहली बार है जब संस्थान के वैज्ञानिकों ने उच्च हिमालयी क्षेत्रों में कार्बन की बढ़ती मात्रा का अध्ययन किया है।

वाडिया के वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले एक साल के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि पश्चिमी विक्षोभ के चलते उच्च हिमालयी क्षेत्रों में कभी कार्बन का स्तर 0.1 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तो कभी चार माइक्रोग्राम तक मापा गया है। बारिश के दौरान कार्बन की मात्रा कम पाई गई है। अब अध्यन कर ये जानकारी जुटाई जाएगी कि आखिरकार कार्बन की मात्रा किस दर से बढ़ रही है। पृथ्वी दिवस पर इस बार की थीम ‘प्रोजेस्ट ऑवर स्पेसीज’ रखी है। दुनियाभर के वैज्ञानिकों का कहना है यदि मानव जीवन सुरक्षित रखना है तो धरती की सभी प्रजातियों का संरक्षण करना काफी जरूरी है।
वाडिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पीएस नेगी के अनुसार पृथ्वी अकेला ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन है। पृथ्वी को बचाना है तो ओजोन परत को बचाना होगा। दुनिया में अधिक से अधिक वनीकरण करने के साथ ही सूख रही नदियाें का संरक्षण करना होगा। प्रदूषण कम करने को लेकर ठोस कदम उठाने होंगे। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में कार्बन की मात्रा बढ़ का बढ़ना अच्छे संकेत नहीं है। यूरोपीय देशों में तेजी से  बढ़ रहा प्रदूषण इसका कारण है।

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