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जीवन से भी अधिक ज़िंदादिल अभिनेता इरफ़ान के नाम ख़त-आश़िक

प्रिय इरफ़ान,

अभी ट्विटर से मालूम हुआ कि तुम अब इस दुनिया में नहीं रहे। तुम शरीर छोड़कर रूह बन गए हो। यानी तुम जो थे, वही बन गए हो। शरीर तो वैसे भी टेंपररी पुर्जा है और रूह परमानेंट।

यार, अभी हच का छोटा रिचार्ज वाला एड याद अा रहा है। उफ्फ, इतना ज़िंदा दिल इंसान कोई कैसे हो सकता है। अभी तुम्हारे नहीं होने का एहसास नहीं हो रहा है। तुम इस क़दर हम सभी के भीतर बसे, रचे, गढ़े हुए थे कि अभी एक दौर लगेगा यह यक़ीन कर पाने में कोई इतना अपना, इतनी दूर की यात्रा पर अचानक कैसे निकल सकता है। लेकिन चूंकि इस यात्रा पर हम सभी को एक रोज़ निकलना है इसलिए देर सबेर यक़ीन अा जाएगा कि तुम चले गए हो। लेकिन फिर भी यार 53 साल जाने की उम्र नहीं होती है।

अभी सबसे पहले तुम्हारी हंसी याद अा रही है। इतनी स्वाभाविक, करुणा से भरी, निश्चल हंसी मैंने अपने जीवन में कम ही देखी है। तुम्हारी हंसी तुम्हारे मन का आईना थी। तुम कितने प्यारे, सरल, सहज, प्रेमी व्यक्ति हो इसका एहसास तुम्हारी हंसी करवाती थी।

तुम्हारी फ़िल्में जैसे अभी मेरे कमरे में इस वक़्त तैर रही हैं। हासिल, मकबूल, पान सिंह तोमर, हिंदी मीडियम, ब्लैकमेल, नेमशेक, हैदर, पीकू, रोग याद अा रही हैं। तुम्हारा संजीदा चेहरा सुनाई दे रहा है। तुम्हारी भावुक आवाज़ दिखाई दे रही है। तुम्हारा चंद्र कांता सीरियल का किरदार बद्रीनाथ याद आ रहा है। तिलिस्म की दुनिया में खो रहा हूं मैं।

तुम्हारी फिल्मी यात्रा पर तो कई वर्षों से तनकीद हो रही है। लोग लिख और पढ़ रहे हैं। ये वक़्त तुम्हारी शख्सियत को और नज़दीक से महसूस करने का है। तुम्हारे मित्र तिग्मांशु धूलिया ने एक बार बताया था कि तुम कितने मेहनती कलाकार रहे हो। आज सारी दुनिया तुम्हारे जाने के ग़म में है। इसलिए कि सब तुमको प्यार करते हैं। प्यार इसलिए करते हैं कि तुम अद्भुत अभिनेता, अद्भुत आर्टिस्ट और कमाल इंसान थे। लेकिन यह विलक्षणता यूं ही नहीं पाई थी तुमने।

तुम ऐसे परिवेश से आए थे जहां सादगी, देसी पन विरासत में मिलता है। लेकिन तुम अाए ऐसे क्षेत्र, ऐसी दुनिया में थे जहां झूठ, ग्लैमर, चमक धमक हावी होती है। यानी दो अलग अलग दुनिया थीं, जिनके बीच तुम बीत रहे थे। तुमने ख़ुद पर, अपनी भाषा पर, अपने ज़ेहन पर काम किया। तुमने विश्व सिनेमा देखा, विश्व साहित्य पढ़ा, तुमने दुनिया घूमी। तुमने जीवन को पढ़ा और प्राप्त हुए अनुभवों को आत्मसात किया।

ये बहुत बड़ी बात है कि तुमने शोहरत देखी और ख़ुद को संभाले रखा। यह सबसे कठिन काम होता है। तुम साधक, योगी की तरह रहे। सिनेमा की कंट्रोवर्सी, कैंप, पॉलिटिक्स से दूर। अभिनय, कला ही तुम्हारे सबसे नज़दीक रहे।

इसका नतीजा था कि तुम देश नहीं बल्कि विदेशी ऑडियंस की पसंद बने। तुम एकमात्र भारतीय अभिनेता बने, जिसे इतना प्यार हॉलीवुड फ़िल्म इंडस्ट्री में मिला। यह तुम्हारी मेहनत, निष्ठा, समर्पण, जुनून का फल था।

बहुत बड़ा बनकर भी किस तरह सरल रहा जाता है। किस तरह अपने से उम्र, तजुर्बे में छोटे लोगों को सहज किया जाता है, यह तुमसे पीढ़ियों को सीखना चाहिए। कोई तुमसे न मिला हो फिर भी तुम्हारी आंखें, तुम्हारी हंसी, तुम्हारी आवाज़, सम्पूर्ण अभिनय, यह महसूस करने पर मजबूर कर देता है कि तुम अपने हो, मेरे घर के व्यक्ति हो। तुम वो हो जिसे मैं जानता हूं। जिससे मैं रिलेट करता हूं।

तुम बीमार हुए और तुमने संदेश दिया अपने प्रिय जनों को। संदेश बहुत भावुकता से भरा था। तुम ख़ुद भावुकता से लबालब थे। और इस जानलेवा बीमारी की खबर ने भावुकता के सारे बांध तोड़ दिए। तुम्हारे संदेश को सुनकर मैं रोया था। मुझे उस वक़्त तुम्हारी आवाज़ में एक बेफिक्र उदासी महसूस हो रही थी। जैसे तुमने उस रोज़ ही तय कर लिया था कि तुम जा रहे हो।

तुम्हारा जाना, मुझे और मनुष्यता को बहुत कुछ सीखा के गया है। तुम अभिनय, शोहरत के शीर्ष पर थे। लेकिन कभी घमंड, छिछला पन तुमको छू भी नहीं पाया। हमेशा मस्त, बिंदास, लल्लन टॉप आदमी थे तुम। और साफ गोई से सब कुछ कहते थे। चाहे फिर तुमको इसके लिए लोग, धार्मिक उन्मादी निशाने पर ही क्यों न ले लें। तुमने हमेशा सच बोलने की ताक़त रखी अपने पास। तुम कभी विचलित नहीं हुए इस बात से कि सच एक क़ीमत पर आता है।

तुम्हारे जाने से जीवन दर्शन भी खुल रहा है। महसूस हो रही है अपनी तुच्छता। दिख रहा है कि कितना कुछ पाने के लिए, आप क्या क्या प्लान बनाते हैं। उन प्लान को पूरा करने के लिए परिवार, प्रेम, ख़ुशी को भूल जाते हैं। उसके साथ लोगों के प्रति नफ़रत, द्वेष, ईर्ष्या, हीनता, कुंठा, कॉम्पटीशन की भावना रखते हैं। लोगों से रिश्ते ख़राब करते हैं कि आप आगे निकल जाएं। आपके सपने पूरे होने न चूक जाएं। और फिर होता क्या है। प्रकृति आपके बनाए प्लान पर पानी फेर देती है। सब ठाठ पड़ा रह जाता है। और लाद चलता है बंजारा।

इरफ़ान आप महसूस हो रहे हैं। लिखते हुए मेरी आंखों में आंसू हैं। उंगलियां कांप रही हैं। मैंने हमेशा ही निश्चलता को बुद्धिमत्ता पर तरजीह दी है। कहां लेकर जाऊंगा इतना ज्ञान। ज्ञान जब प्रेम पर हावी हो जाए तो फिर किसी काम का नहीं। यह जीवन बहुत छोटा है किसी से नफ़रत करने, बैर रखने, शिकायतें पालने के लिए। हमने अपने भीतर कितना कुछ भर के रखा के लोगों के लिए, मजहबों के लिए, राजनीति के लिए, विचार धाराओं के लिए। इस कारण हमारी आत्मा बोझ में दबकर रह गई है। और जीवन मर चुका है।

असल में यह जीवन तो प्रेम करने और माफ़ करने के लिए है। यह बात जितनी जल्दी समझ आए, जीवन उतना सार्थक बनता है। वरना यह एहसास भर जाता है कि हम चूक गए हैं। दुख और हास्य इस बात का है कि अहंकार के कारण हमको दिखता ही नहीं कि हम चूकते ही जा रहे हैं जन्मों से।

आज जब मैं वर्तमान में जी रहा हूं। किसी से कोई शिकायत नहीं, नफ़रत नहीं, होड़ और ईर्ष्या नहीं है। आज केवल प्रेम है। जो रह जाएगा मेरे बाद भी। जैसे आप अब प्रेम बनकर रह गए हैं मेरे भीतर और सभी प्रशंसकों के बीच। तब आपकी सार्थकता और शिद्दत के साथ महसूस हो रही है।

आपके लिए कितना ही कुछ लिखूं कम होगा। आपके लिए प्रेम लिखना ही पूर्ण होगा।

आपको बहुत प्रेम इरफ़ान ❣️

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