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पहाड़ को अपने बेटे पर गर्व,छोटी सी उम्र में लगाए 40,000 हजार पेड़,शरीर भी किया दान

पहाड़ को अपने बेटे पर गर्व,छोटी सी उम्र में लगाए 40,000 हजार पेड़,शरीर भी किया दान

नैनीतालः गलोबल वार्मिंग, वनों की लगातार हो रही कटाई और अलग-अलग प्रकार के प्रदूषण में वृद्धि जैसे कई कारणों से हमारा पर्यावरण लगातार बिगड़ रहा है। पर्यावरण संरक्षण मानव के साथ-साथ अन्य जीवित प्राणियों के लिए भी बहुत आवश्यक है। और हमारा कर्तव्य है कि हम पर्यावरण को बचाने के लिए जो कुछ भी कर सकते हैं वह करें। कुछ युवा ऐसे भी हैं जो पर्यावरण को बचाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर देते हैं। आज हम आपको ऐसे ही एक युवा के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने पेड़ों के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है। साथ ही अब तक 40 हजार पेड़ भी लगा दिए हैं। हम बात कर रहे हैं चंदनसिंह नयाल की…..

बता दें कि नैनीताल जनपद के ओखलकांडा ब्लाॅक के ग्राम नाई के तोक चामा निवासी चंदनसिंह नयाल अभी सिर्फ 26 साल के हैं। इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के बाद कैरियर बनाने की जगह चंदन ने पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी उठाई। और चंदन 6 सालों में 40 हजार से अधिक पेड़ लगा चुके हैं। इतना ही नही उन्होने अपना शरीर भी हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया। देहदान के पीछे उनका एक महत्वपुर्ण उद्देश्य है… कि उनकी मौत के बाद भी एक छोटा सा पेड़ भी न कटे।

चंदनसिंह ने लोहाघाट से इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। इसके बाद रुद्रपुर में कुछ समय बतौर शिक्षक पढ़ाया। इस दौरान उन्होंने लोगों को पेड़ों और जंगल के प्रति जागरूक भी किया। उन्होंने छात्र छात्राओं और अन्य लोगों की मदद से विभिन्न अवसरों पर पौधारोपण किया। जब वे 12वीं में थे, उनकी मां का देहांत हो गया था। चंदन का कहना है कि उनकी मां बचपन से ही उनकी प्रेरणा रही हैं। जब भी वे नया पौधा लगाते हैं,तो सबसे पहले वे अपनी मां का स्मरण करते हैं।

चंदन हर साल हजारों फलदार और बांज के पौधों का वितरण और पौधारोपण करते हैं। साथ ही पिछले 6 सालों में नैनीताल जनपद के विभिन्न ब्लाॅकों में लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक कर चुके हैं।और अब तक लगभग 150 विद्यालयों में हजारों छात्र-छात्राओं को पर्यावरण को कैसे बचाया जा सके उसके बारे में पढ़ा चुकें हैं। चंदन के गांव के पास चीड़ और बुरांस का जंगल था और एक इन जंगल में इतनी भयंकर आग लगी की बुरांस का पूरा जंगल नष्ट हो गया। यह देख वे काफी दुखी हुए। और उन्होने ठान ली की वे एक दिन इस जंगल को फिर से सही करेंगे।

इस साल उन्होंने अपने गांव के पास के जंगलों में चाल खाल बनाए हैं, ताकि जंगल में पानी का संग्रहण हो। जंगली जानवरों को पीने का पानी मिल सके और जंगल के पेड़ों को नमी भी मिलते रहे। चंदन का कहना है कि उनका मुख्य उद्देश्य बांज के जंगलों को तैयार करना और चाल खाल, खंतिया बनाकर जलस्रोतों के जरिए जंगल को बचाना है। वे हर साल बांज, आडू, पोलम, सेब, अखरोट, आंवला, माल्टे, नींबू की पौध वितरित करते हैं। उन्होने खुद की नर्सरी भी तैयार की है। और अब वे 5-6 हजार पौध लोगों को वितरित करते हैं।

चंदन का मानना है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करने के साथ-साथ धरातलीय प्रयास भी लगातार करने होंगे।और बांज के जंगलों को बढावा देना होगा। बांज से न केवल चारा मिलेगा, बल्कि भूस्खलन रोकने में भी मदद मिलेगी। चंदनसिंह और उनकी इस मुहिम को हल्द्वानी लाइव का सलाम।

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