Editorial

लोकसभा चुनाव का इतिहास बोल रहा है- अटल जी जैसा कोई नहीं, आप सबसे अलग थे…

हल्द्वानी: वसुंधरा कुंवर:भारतीय लोकतंत्र को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है। इसमें त्रिस्तरीय चुनाव होते हैं- लोकसभा, विधानसभा तथा नगर/ ग्राम पंचायत चुनाव। लोकसभा चुनाव लोकतंत्र का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है।2019 सत्रहवीं लोकसभा  के गठन के लिए भारतीय आम चुनाव, देशभर में 11 अप्रैल से 19 मई 2019 के बीच 7 चरणों में अयोजित कराये जाने हैं।

चुनाव के परिणाम 23 मई को घोषित किये जाएंगे ।जहाँ लोकसभा चुनाव के चलते ,मजबूत जड़े होने के बावजूद पार्टियों में अपने ही क्षेत्रों की सीट बचाना मुश्किल हो रहा है, वहाँ कुछ ऐसे भी नेता रहे जिन्होंने पार्टी की नहीं अपनी छवि के दम पर कईं बार लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की । इस श्रृंखला में सबसे ऊपर है भारतीय राजनीति का सबसे गौरवशाली नाम ‘अटल बिहारी वाजपेयी ‘।

“टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी ,अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं,

गीत नया गाता हूं “अपनी कविताओं की ही तरह दमदार व्यक्तित्व के अविस्मरणीय राजनितिज्ञ थे स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी।जिनका राजनीतिज्ञ के रूप में  हमारा प्रतिनिधि होना हमारा सौभाग्य था।भारतीय चुनावों में मुख्य रूप से मुकाबला कांग्रेस व भाजपा (पुराना नाम जनसंघ) के बीच ही होता आया है। और भारतीय जनता पार्टी के लिए  तो अटल जी सदैव ही एक वरदान साबित हुए।उन्हें जीत के लिए चुनाव की जरूरत नही थी ।

देश में पहली बार 1952 में लोकसभा का गठन हुआ। ऐसा पहले आम चुनावों के सफलतापूर्वक संपन्न होने के बाद हुआ था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस) 364 सीटों के साथ पहले लोकसभा चुनावों के बाद सत्ता में आई थी । कांग्रेस तब एक सबसे मजबूत पार्टी थी । बावजूद इसके अटल जी अटल जी 12 बार संसद के सदस्‍यता हासिल की, जिसमें से  वे 10 बार लोकसभा और 2 बार राज्यसभा के सांसद रहे हैं।  1991 से 2004 तक वाजपेयी ने लखनऊ का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने दूसरी और चौथी लोकसभा में बलरामपुर का प्रतिनिधित्व किया, पांचवीं लोकसभा में ग्वालियर और छठीं और सातवीं लोकसभा में नई दिल्ली का नेतृत्व किया।
वे देश के पहले नेता थे जो 4 राज्यों के 6 लोकसभा क्षेत्रों से सासंद रहे। जिसमें उत्तर प्रदेश के लखनऊ और बलरामपुर।गुजरात के गांधीनगर ,मध्यप्रदेश के ग्वालियर एंव विदिशा ,नई दिल्ली रहे।इसके बाद 1962 और 1986 में उन्हें राज्यसभा के लिए चुना गया था। दिसंबर, 2005 में, वाजपेयी ने मुंबई में एक पार्टी की सभा के दौरान राजनीति से रिटायरमेंट की घोषणा कर दी। वह लगभग 47 वर्षों तक संसद के सदस्य रहे। 1996 से 2004 के बीच वाजपेयी ने तीन बार प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। पहली बार वे 13 दिनों के लिए प्रधानमंत्री बने,फिर 1998 और 1999 के बीच 13 महीने और फिर 1999-2004 के बीच पूरे सत्र के लिए इस पद पर रहे।
हालांकि अब अटल जी तो हमारे बीच नहीं रहे परन्तु उनके ,साफ व सुनहरे राजनैतिक कार्यकाल से वर्तमान के हर राजनेता को बहुत कुछ सीखने की जरूरत है।वे ऐसे नेता थे जो सिर्फ चुनावों मेें ही नहीं जीते बल्कि हर उम्र ,हर पार्टी ,हर तरह के समाज के दिलों में वे अमर हैं और हमेशा रहेंगे।उनकी जीत का मंत्र उनकी कविताओं में वे लिखते थे।लोकसभा चुनाव के आदर्श खिलाड़ी अटल बिहारी वाजपेयी जी कहा करते थे।
 उजियारे में, अंधकार में,कल कहार में, बीच धार में,घोर घृणा में, पूत प्यार में,क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,जीवन के शत-शत आकर्षक,अरमानों को ढलना होगा.कदम मिलाकर चलना होगा”।इन पंक्तियों का सार ले कर  चुनाव के मुद्दों पर बात की जाये तो ही शायद परिणाम भी वैसा मिल जाये जैसा हर नेता अपने चुनाव में देखना चाहता है।

 

 

 

 

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