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उत्तराखंड के दो शिक्षकों को मिला राष्ट्रीय पुरस्कार, सीएम बोले गर्व है आप पर

गर्व की बात, उत्तराखंड के दो शिक्षकों को मिला राष्ट्रीय पुरस्कार, राज्य दे रहा है बधाई

देहरादून: अपने बच्चों के वजह से उत्तराखंड को रोजाना गौरवान्वित होने का मौका मिलता है। राज्य का युवा हर क्षेत्र में कमाल कर रहा है। इसके पीछे उनके गुरुओं का योगदान है जो सुर्खियों में नहीं आ पाता है लेकिन इस बार देवभूमि के दो शिक्षकों राज्य का मान बढ़ाया है। दोनों शिक्षकों के कामयाबी ने राज्य में मौजूद हर उस शख्स को सलाम करती है जिसने शिक्षा के माध्यम से बदलाव लाने की कोशिश की है। राज्य के उत्तराखंड के दो शिक्षकों को इस वर्ष राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया है।

इस लिस्ट में एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय जोगला, कालसी (देहरादून) की उप प्रधानाचार्य सुधा पैन्यूली और राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पुड़कूनी, कपकोट (बागेश्वर) के प्रधानाध्यापक डॉ. केवलानंद कांडपाल का नाम शामिल हैं। दोनों ही शिक्षकों को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बधाई दी है।  मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित इन शिक्षकों ने प्रदेश का नाम रोशन किया है। उन्होंने इस सम्मान को अन्य शिक्षकों के लिए भी प्रेरणादायी बताया। देश में एकलव्य आदर्श विद्यालयों में सम्मानित होने वाली सुधा पैन्यूली पहली अध्यापिका हैं। यह प्रदेश के लिए गर्व की बात है।

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बता दें कि केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने शुक्रवार को राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चयनित शिक्षकों के नाम उजागर किए। इस लिस्ट में कुल 47 शिक्षकों का नाम शामिल है। बता दें कि पुरस्कार के लिए शिक्षकों का चयन राष्ट्रीय स्तर पर स्वतंत्र ज्यूरी ने किया। 

बालिका शिक्षा में विशेष योगदान और शिक्षा के विकास के लिए उत्कृष्ट कार्य करने के लिए राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पुड़कूनी(बागेश्वर) के प्रधानाध्यापक डॉ. केवलानंद कांडपाल को यह पुरस्कार पर मिला है। इससे पहले वह शैलेश मटियानी पुरस्कार भी प्राप्त कर चुके हैं। डॉ. कांडपाल 2017 में पदोन्नत होकर दुर्गम राउमावि पुड़कूनी के प्रधानाचार्य बने। जब वह विद्यालय गए तो वहां शिक्षा को लेकर विशेष जागरूकता नहीं था।

खासतौर पर बालिकाएं शिक्षा छोड़ रही थी। इस वक्त में उन्होंने अपनी कार्यशैली ने लोगों में जागरूकता फैलाई। इसके लिए उन्होंने विद्यालय में मां-बेटी सम्मेलन शुरू करवाया। घर-घर जाकर अभिभावकों को बेटियों को शिक्षित करने को कहा। कहते हैं ना परिश्रम फल जरूर देता है और ऐसा ही पहाड़ के गुरुजी के साथ हुआ। पहले ही साल विद्यालय छोड़ चुकी दो छात्राओं ने पुनः प्रवेश लिया। इसके अलावा उन्होंने शिक्षा के विकास के लिए सेवानिवृत कर्मचारियों, पुरातन छात्रों और समुदाय को अपना साथी बनाया और क्षेत्र में शिक्षा के माध्यम से बदलाव लाने के मिशन पर निकल पड़े।

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