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इस परिवार के 10 सदस्य फौज में रहकर कर रहे देश सेवा, रोंगतें खड़े कर देगी पूरी कहानी

नई दिल्ली: देश सेवा को लेकर हमारे देश में युवाओं में काफी क्रेज देखने को मिलता है। भारतीय सेना में दाखिल होना गौरव की बात जो हर किसी को प्राप्त नही होता है। आज हम आपकों एक ऐसे परिवार की कहानी बताने जा रहे है जहां के 10 सदस्य फौज और एक पुलिस में है। ललती राम इनके 5 बेटे और 5 पोते फौज में हैं और पोती पुलिस अफसर बनकर देश सेवा कर रही है। वो  70वें गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में राजपथ पर मौजूद थे। वह सुभाष चंद्र बोस की सेना  आजाद हिन्द फौज का हिस्सा रहे थे।

साल 1942 में भारत को अंग्रेज़ों से आजाद कराने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज, इंडियन नेशनल आर्मी का गठन किया था।  लालती राम का जन्म 1 जनवरी 1921 को हरियाणा के झज्जर जिले के बेरी क्षेत्र के गांव दुबलधन में हुआ था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की फौज में रहते हुए इन्होंने कई देशों में हुए युद्ध का हिस्सा बनें।  लालती राम इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) में साल 1941 में भर्ती हुए थे। आजादी की लड़ाई लड़ते हुए वे कुछ समय के लिए लापता हो गए।

करीब 5 साल बाद वे लौटकर साल 1946 में वह शादी के बंधन में बंध गए। उनकी पत्नी का नाम चांद कौर है, जो आज 92 साल की हो चुकी हैं। लालती राम के 5 बेटे फौज में रहे। 9 पोतों में 5 इस समय फौज में हैं। वहीं एक पोती पुलिस अफसर बनकर देश सेवा कर रही है। आजाद हिन्द फौज में रहते हुए उन्होंने तीन मेडल जीते थे। वे अंबाला, सिंगापुर, हांगकांग, जापान, थाईलैंड और कोलकाता की जेल में भी रहे।

स्वतंत्रता सेनानी लालती राम

लालती राम आजाद हिन्द फौज के उन बहादुर सिपाहियों में से हैं, जिनको ब्रिटिश सरकार ने ट्रेन में गुप्त तरीके से 16 अप्रैल 1946 को कोलकाता से दिल्ली भेजा था। तब उनके साथियों ने उन्हें व अन्य लोगों को इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के डिब्बों के ताले तोड़कर छुड़ा लिया था।

स्वतंत्रता सेनानी लालती राम पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से दो बार, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द एक-एक बार सम्मानित हो चुके हैं। इसके अलावा पीएम नरेंद्र मोदी ने भी साल 2018 में उन्हें सम्मानित किया। इन दिनों वे हरियाणा स्वतंत्रा सेनानी समिति के चेयरमैन हैं। इस नाते वे स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों की भलाई के लिए कार्य करने में जुटे हुए हैं। ऐसा पहली बार है, जब किसी स्वतंत्रता सेनानी को समिति का चेयरमैन बनाया गया है।

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