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सुप्रीम कोर्ट ने कहा मोहर्रम पर जुलूस निकालने की अनुमति नहीं

मोहर्रम के महीने को इमाम हुसैन की शहादत याद करते हुए गम के महीने के रूप में मनाया जाता है। 21 अगस्त से मोहर्रम का महीना शुरु हो चुका है। इसके ठीक 10वे दिन जिसे रोज-ए-अशुरा कहा जाता है, हर साल जुलूस निकाला जाता है और इसमें मातम मनाया जाता है। इस साल आशूरा 28 या 29 अगस्त को पड़ेगा।

शिया धर्मगुरु कल्बे जवाद ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इस याचिका पर उन्होंने मांग की थी कि सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम समुदाय को मोहर्रम पर जुलूस निकालने की अनुमति दें। सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना संक्रमण का हवाला देते हुए कहा कि इस तरह लोगों की जान को खतरे में नहीं डाला जा सकता। और इस तरह एक फैसला सुना कर पूरे देश भर में लागू भी नहीं किया जा सकता।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्थानीय प्रशासन स्थिति देखते हुए अपने हिसाब से फैसला सुना सकता है। इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि अगर जुलूस की अनुमति दे दी तो हालात खराब हो सकते हैं। लोगों के बीच संक्रमण हो सकता है और हम नहीं चाहते कि कल को लोग समाज विशेष पर पूर्णा से लाने का आरोप लगाएं।

“पुरी में रथ यात्रा की अनुमति दी थी” कोर्ट ने दिया जवाब

याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट की बेंच से कहा कि जिस प्रकार उड़ीसा में रथ यात्रा की अनुमति दी गई थी उसी प्रकार सावधानी बरतते हुए यहां भी अनुमति दी जाए। इस तर्क का उत्तर देते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि रथ यात्रा सिर्फ एक शहर में होनी थी जिसका विस्तार से मूल्यांकन किया गया एवं सभी पहलुओं को ध्यान में रखा गया। मोहर्रम के दिन जुलूस पूरे देश में निकाले जा सकते हैं और स्थिति अभी इसके लिए ठीक नहीं है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि कौन सा जुलूस, कहां से और कब निकाला जाएगा।

बेहतर यही होगा की जहां जुलूस निकाला जाना है फैसला भी वही का प्रशासन करें। वही याचिकाकर्ता ने कहा कि लखनऊ में शिया समुदाय की आबादी बहुत अधिक होने की वजह से कम से कम वहां अनुमति दी जाए। इसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि इसका फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट करें तो ठीक है आप वहां जा सकते हैं।

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