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अपने माता-पिता को कभी नहीं देखा वो बेटा क्रिकेट के मैदान पर करेगा मम्मी-पापा का नाम रोशन

हल्द्वानी: क्रिकेट को लेकर भारत देश में दिवानगी किसी से छिपी नहीं रही है।  क्रिकेटर बनने का सपना भारत के हर घर का बच्चा देखता है लेकिन उसे पाने के लिए जो संघर्ष करना पड़ता है उसकी स्क्रिप्ट सामने कम ही आती है। क्रिकेट से दूर भागने वाले इस गेम को पैसों वालों का बोलते है लेकिन हम इस गेम को किस्मत वावो का बोलता हैं। क्रिकेट के मैदान पर उस खिलाड़ी की किस्मत चलती है, जिसकी कहानी युवाओं के लिए मिसाल पैदा करें। आज हम एक ऐसे खिलाड़ी की स्टोरी आपको बताने जा रहे हैं जिसने अपने माता-पिता को कभी नहीं देखा। जिसने क्रिकेट के मैदान पर खेलने के लिए कई राते भूखे पेट बिताई है। वो अब देवधर ट्रॉफी में अजिक्य रहाणे की कप्तानी में खेलने के लिए तैयार है। हम बात कर रहे है (कोलकाता) 23 साल के पप्पू राय की।

माता-पिता का निधन

पापू ने जब ‘मम्मी-पापा’ कहना भी शुरू नहीं किया था तब उन्होंने अपने माता पिता खो दिए थे। अपने नये राज्य ओड़िशा की तरफ से विजय हजारे ट्राफी में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद देवधर ट्राफी के लिये चुने गये पापू ने अपने पुराने दिनों को याद किया जब प्रत्येक विकेट का मतलब होता था कि उन्हें दोपहर और रात का पर्याप्त खाना मिलेगा। पापू ने बताया कि मुझे बॉल डालने के बदले खाना मिलता था और विकेट लेने के बदले 10 रुपए। माता-पिता के निधन के बाद पप्पू की देखभाल उनके चाचा-चाची ने की।

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पापू ने अपने पिता जमादार राय और पार्वती देवी को तभी गंवा दिया था जबकि वह नवजात थे। उनके पिता ट्रक ड्राइवर थे और दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हुआ जबकि उनकी मां लंबी बीमारी के बाद चल बसी थी। पापू के माता पिता बिहार के सारण जिले में छपरा से 41 किमी दूर स्थित खजूरी गांव के रहने वाले थे तथा काम के लिये कोलकाता आ गये थे। वह अपने माता पिता के बारे में केवल इतनी ही जानकार रखते हैं। पापू ने कहा, ‘‘उनको कभी देखा नहीं। कभी गांव नहीं गया। मैंने उनके बारे में केवल सुना है।’’काश कि वे आज मुझे भारत सी की तरफ से खेलते हुए देखने के लिये जीवित होते। मैं कल पूरी रात नहीं सो पाया और रोता रहा। मुझे लगता है कि पिछले कई वर्षों की मेरी कड़ी मेहनत का अब मुझे फल मिल रहा है।’’

माता – पिता की मौत के बाद पापू के चाचा और चाची उनकी देखभाल करने लगे लेकिन जल्द ही उनके मजदूर चाचा भी चल बसे। इसके बाद इस 15 वर्षीय किशोर के लिये एक समय का भोजन जुटाना भी मुश्किल हो गया, लेकिन क्रिकेट से उन्हें नया जीवन मिला। उन्होंने पहले तेज गेंदबाज के रूप में शुरुआत की लेकिन हावड़ा क्रिकेट अकादमी के कोच सुजीत साहा ने उन्हें बायें हाथ से स्पिन गेंदबाजी करने की सलाह दी।

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साल 2011 में बंगाल क्रिकेट संघ की सेकेंड डिवीजन लीग में सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज थे। उन्होंने तब डलहौजी की तरफ से 50 विकेट लिये थे, लेकिन तब इरेश सक्सेना बंगाल की तरफ से खेला करते थे और बाद में प्रज्ञान ओझा के आने से उन्हें बंगाल टीम में जगह नहीं मिली। भोजन और आवास की तलाश में पापू भुवनेश्वर से 100 किमी उत्तर पूर्व में स्थित जाजपुर आ गये। पापू  दोस्तों ने मुझे भोजन और छत मुहैया कराया। इस तरह से ओड़िशा मेरा घर बन गया। पप्पू ने जूनियर लेवल में काफी शानदाप प्रदर्शन किया उसके बाद उन्हे ओडिशा की सीनियर टीम में भी जगह मिल गई। ओड़िशा की तरफ से लिस्ट ए के आठ मैचों में 14 विकेट लिये।अब वह देवधर ट्राफी में खेलने के लिये उत्साहित हैं।

 

 

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