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बड़ी खबर: हल्द्वानी समेत पूरे नैनीताल जिले में डीएम ने केदारनाथ फिल्म पर लगाया बैन

हल्द्वानी: केदारनाथ फिल्म 7 दिसंबर को रिलीज होने जा रही है। फिल्म के पर्दे पर आने से पहले विवाद पैदा हो गया है। नैनीताल जिले में सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जिलाधिकारी विके सुमन ने फिल्म पर रोक लगाई है। इस फिल्म को लव जिहाद को बढ़ावा देना और गंदे दृश्य के चलते उत्तराखण्ड का अपमान करने का आरोप लगा है। वहीं इस फिल्म की रिलीज पर रोक के लिए हाईकोर्ट में अर्जी भी डाली गई थी जिसे कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया गया था।

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वहीं गढ़वाल के स्वामी दर्शन भारती ने मांग की थी कि फिल्म पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। हाई कोर्ट ने कहा कि भारती को अपनी शिकायत के साथ रुद्रप्रयाग जिला मैजिस्ट्रेट के पास जाना चाहिए। उत्तराखंड के अलावा बॉम्बे और गुजरात हाई कोर्ट में फिल्म को लेकर जनहित याचिका दाखिल की गई थी, जिसे भी खारिज कर दिया गया।  फिल्म की रिलीज को रोकने के लिए उत्तराखण्ड के कई क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शन हो रहा है।

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मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन की एकल पीठ को बताया गया कि फिल्म को प्रतिबंधित कर देना चाहिए क्योंकि यह हिंदू भावनाओं को चोट पहुंचाने के अलावा उन लोगों को भी आघात पहुंचाती है, जो 2013 में आई बाढ़ से प्रभावित हुए थे। इस बाढ़ ने केदारनाथ को काफी नुकसान पहुंचाया था। याचिकाकर्ता की दलील थी कि यह फिल्म मुस्लिम लड़के और हिंदू लड़की के बीच विवाह का संकेत देकर ‘लव जिहाद’ को प्रचारित करती है।

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इस आपत्ति के मद्देनजर राज्य सरकार ने पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज की अध्यक्षता वाली एक समिति गठित की है, जिसमें गृह सचिव नितेश कुमार झा, पुलिस महानिदेशक अनित रतूड़ी और पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर शामिल हैं। एक अधिकारी ने बताया कि समिति से सभी पहलुओं पर विचार कर राज्य सरकार को एक विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने को कहा गया है, जिसके बाद उत्तराखंड में फिल्म की रिलीज को लेकर अंतिम फैसला किया जाएगा। फिल्म शुक्रवार को देशभर में रिलीज के लिए तैयार है।

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बॉम्बे हाई कोर्ट ने ने गुरुवार को एक जनहित याचिका खारिज कर दी जिसमें फिल्म ‘केदारनाथ’ की रिलीज का विरोध करते हुए कहा गया था कि यह फिल्म धार्मिक भावनाएं आहत करने के साथ-साथ भगवान केदारनाथ की गरिमा को भी घटाती है। मुख्य न्यायमूर्ति नरेश पाटिल और न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें विस्तार से सुनीं। फिर उन्होंने जनहित याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह सुनवाई योग्य नहीं है।

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दो स्थानीय वकीलों प्रभाकर त्रिपाठी और रमेशचंद्र मिश्रा द्वारा दायर इस याचिका में दावा किया गया था कि वर्ष 2013 में उत्तराखंड में आई भीषण बाढ़ की पृष्ठभूमि में बनी इस फिल्म में न केवल आपदा की गंभीरता को कम करके दिखाया गया है बल्कि यह धार्मिक भावनाएं भी आहत करती है। याचिकाकर्ताओं ने कहा ‘कहानी काल्पनिक है। फिल्म एक हिंदू ब्राह्मण लड़की और एक मुस्लिम लड़के की प्रेम कहानी बताती है जो विश्वास से परे है। इसे उत्तराखंड में बड़ी संख्या में हिंदू श्रद्धालुओं की जान लेने वाली प्राकृतिक आपदा से जोड़ा गया है।’

 

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