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सरकार करेगी देवभूमि की लोक कला का प्रचार, हर ऑफिस के बाहर दिखेगी ऐपण से बनी नेम प्लेट

हल्द्वानी: प्रदेश की लोक संस्कृति को बचाए रखने के प्रयास करना बहुत ज़रूरी है। ज़रूरी इस लिहाज़ से है क्योंकि आने वाली पीढ़ी को हमारे पुराने रीति रिवाजों के बारे में ज्ञान होना चाहिए। इसी कड़ी में उत्तराखंड सरकार ने अहम फैसला लिया है। अब सभी सरकारी दफतरों के बाहर पारंपरिक लोक कला ऐपण की कलाकारी से सज़ी नेम प्लेट लगाई जाएंगी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यालय में अल्मोड़ा की बेटियों द्वारा बनाई गई ऐपण नेम प्लेट को लगा भी दिया गया है। अब अल्मोड़ा की बेटियां अन्य दफ्तरों के लिए भी यह खास नेम प्लेट तैयार कर रही हैं।

राज्य सरकार द्वारा ऐपण कला को लेकर खासा बेहतर कदम उठाए जा रहे हैं। प्रदेश की कई बेटियां जो ऐपण कला में हुनरमंद हैं, उन्हें आगे बढ़ाने के लिए प्रतियोगिताएं व सम्मान समारोह करवाए जा रहे हैं। इसी कड़ी में अब मुख्यमंत्री रावत ने कापी ज़रूरी फैसला लिया है। हाल ही में सीएम रावत ने अल्मोड़ा के एक कार्यक्रम में पहुंचकर ऐपण बना रही बालिकाओं को जमकर सराहा था। जिसके बाद सीएम के कार्यालय में ऐपण से सजी नेम प्लेट लगाई गई है। साथ ही अब हर दफ्तर के लिए ऐपण नेम प्लेट के ऑर्डर दे दिए गए हैं। जल्द ही विभिन्न कार्यालयों में अधिकारियों के नाम भी इसी कला से सजे दिखाई देंगे।

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उत्तराखंड में यह ऐपण कलाकारी घरों की दीवारों की शोभा बढ़ाने के बहुत सदियों से इस्तेमाल की जाती है। बहरहाल अब यह कला मॉडर्न रूप ले चुकी है। अब कई बालिकाओं के लिए यह एक रोजगार का साधन भी बनता जा रहा है। युवा वर्ग ऐपण कला को भूलने की जगह इसको बढाने के प्रयास कर रहा है। इसे फाइल फोल्डर और कवर से लेकर टैक्सटाइल इंडस्ट्री तक भी इस कला का उपयोग किया जा रहा है। युवाओं को इस कला का प्रशिक्षण देने के लिए हस्तशिल्प और हथकरघा बोर्ड को जिम्मेदारी दी गई है।

ऐपण कलाकारी का खास तौर पर धार्मिक अनुष्ठानों शादी समारोह और कुछ खास मौकों पर इस्तेमाल किया जाता था। साथ ही त्योहारों पर मिट्टी से आंगन और दीवारों में पारंपरिक ऐपण कला के जरिए इन्हें सुंदर बनाने का काम होता था। वैसे अब तो स्टेशनरी से लेकर नेम प्लेट, चाबी के छल्ले, टेक्सटाइल और बर्तनों तक में इस कला को उतारा जा रहा है। इस कला को मुख्य तौर पर कुमाऊं में दिखा जा सकता है। अल्मोड़ा और हल्द्वानी तो इसके हब के रूप में बनते जा रहे हैं। अब मुख्यमंत्री रावत के इस फैसले से वाकई इस कला को और नई पहचान और आयाम मिलने की उम्मीदें लगाई जा रही हैं।

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