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चमोली आपदा से सहमे गांववासियों ने जंगलों में गुज़ारी रात, आपबीती सुनकर रो पड़ेंगे आप

हल्द्वानी: प्रदेश में चमोली आपदा के बाद से ही लोग सहमे हुए हैं। जो लोग बच गए हैं, उनसे मालूम चलता है कि दृश्य कितना भयावह रहा होगा। गांव वासियों की आपबीती सुन कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ग्लेशियर टूटने से ऋषिगंगा नदी में आया सैलाब, लोगों के लिए रात भर खौफ का मंजर बना रहा। गांव रैणी के रहने वालों ने जंगल व गोशालाओं में रह कर रात गुजारी।

यह सात साल सात महीने बाद है, जब उत्तराखंड ने फिर किसी आपदा को महसूस किया है। चमोली में हई आपदा ने लोगों को केदारनाथ आपदा की तरह ही सदमे में डाल दिया है। रविवार को आई तबाही का हर रैणी वासी प्रत्यक्ष गवाह है। गांव के सभी 70 परिवार अब भी काफी सहमे हुए हैं। ग्रामीणों का मानना है कि अगर गांव के ठीक सामने बगोटधार के टीला ने सैलाब को दूसरी ओर न मोड़ा होता तो रैणी गांव नक्शे से मिट चुका होता।

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गांव में हाल इस कदर हैं कि डर के मारे लोग रात भी गांव में नहीं गुजार पा रहे हैं। बाढ़ आने के बाद से ही पुलिस और समस्त रेस्क्यू टीमों की मदद से गांव खाली कराए जा रहे हैं। यहां भी सभी परिवारों ने रात होने से पहले ही डर के कारण गांव छोड़ दिया और ऊंचाई वाले स्थानों, गोशालाओं व जंगल में चट्टान की आड़ लेकर रात गुजारी।  सुबह होने पर ही वे गांव वापस लौटे।

स्थानीय लोगों की आपबीती

गुड्डू राणा – ‘आंखों के सामने ऐसी भयंकर तबाही मैंने जीवन में पहले कभी नहीं देखी’

रवींद्र सिंह – ‘रैणी के ठीक सामने की पहाड़ी पर बगोटधार में एक टीला है। सैलाब बढ़ कर गांव की ओर आ रहा था, लेकिन बगोटधार के इस टीले ने उसकी दिशा बदल दी। यकीन जानिए इस टीले की बदौलत ही मैं आपके सामने मौजूद हूं।’

बुजुर्ग मुरली सिंह – ‘ऋषिगंगा नदी में 50 मीटर ऊंची लहरें उठ रही थीं। ऐसा लग रहा था, जैसे सैलाब तबाही मचाने के लिए बेताब हो। मैं उस खौफनाक दृश्य को भुला नहीं पा रहा हूं।’

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ग्रामीण बीना देवी ने जानकारी दी। उन्होंने बताया कि रैणी गांव ऋषिगंगा नदी से करीब सौ मीटर की दूरी पर स्थित है। ग्लेशियर के टूटने के बाद, यहां पहाड़ से बड़े-बड़े पत्थर भी गिरे, जिससे गांव के कई मकानों में दरारों के निशान आ गए। उन्होंने बताया कि गांव के ऊपर जंगल में ग्रामीणों ने मवेशियों के लिए छानी (गोशाला) निर्मित की हुई हैं। इन्हीं में महिलाओं और बच्चों ने रात गुज़ारी। जबकि, पुरुष खुले आसमान के नीचे रहे। बिछौना न होने के कारण उन्हें घास पर ही सोना पड़ा।

खौफ की हद इस बात से पता लगाई जा सकती है कि कई एक ग्रामीणों ने तो रात का खाना भी नहीं खाया। बहरहाल गांववासियों का कहना है कि गांव में अभी भी इधर उधर से पत्थर आने का खतरा है। इसलिए फिलहाल अभी रातें गांव से दूर ही गुज़ारनी होंगी। ऐसें में मुश्किल यह भी है कि राशन की भी समस्या गांवों के लोगों को आ रही है।

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