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रंगिली बिंदी घाघरी काई को विश्व विख्यात बनाने वाले हीरा सिंह राणा का निधन

हल्द्वानी: एक ऐसा राज्य जिसका हिस्सा बनना दुनिया के हर शख्स की चाहत होती है। भिन्न संस्कृति होने के बाद भी वह दूसरों को अपनी ओर खींचता है। यहां के लोकसंगीत केवल पहाड़ियों को हीं नही बल्कि किसी को भी थिरकने पर मजबूर कर देते हैं। एक ऐसा ही गाना है रंगिली बिंदी घाघरी काई… जो हीरा सिंह राणा द्वारा गाया था और पूरी दुनिया में छा गया। आज ये गाना दोबारा वायरल हो रहा है क्योकि इसे पहचान देने वाले हीरा अब इस दुनिया में नहीं रहे।

लोक की थाती, जनगीतकार और लोक कवि हीरा सिंह राणा का निधन 78 साल की उम्र में दिल्ली में हुआ। वह अल्मोड़ा के मानिला निवासी थे। उन्होंने शनिवार सुबह अंतिम सांसे ली। हीरा सिंह राणा का नाम महान लोकगायकों की लिस्ट में शुमार है। उन्होंने अपनी गायकी व लेखन से अपेन नाम के साथ उत्तराखंड की भी पहचान स्थापित की। हिरदा कुमाऊंनी के नाम से भी पुकारे जाने वाले हीरा सिंह राणा का जन्म 16 सितंबर 1942 को उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के ग्राम-मानिला डंढ़ोली, जिला अल्मोड़ा में हुआ। उनकी माता स्व नारंगी देवी और पिता स्व मोहन सिंह थे।

हीरा सिंह राणा के कुमाउंनी लोक गीतों के एलबम रंगीली बिंदी, रंगदार मुखड़ी, सौमनो की चोरा, ढाई विसी बरस हाई कमाला, आहा रे जमाना जबर्दस्त हिट रहे और आज का युवा भी इन गानों को गाने से पीछे नहीं हटते हैं।

हीरा ने प्राथमिक शिक्षा मानिला से ही हासिल की। इसके बाद नौकरी के लिए उन्होंने दिल्ली का रुख किया। संगीतकार कैसे संगीत से दूर रह सकता है। नौकरी छोड़ वह संगीत की स्कालरशिप लेकर कलकत्ता पहुंचे और आजन्म कुमाऊंनी संगीत की सेवा करते रहे। वह 15 साल की उम्र से ही विभिन्न मंचों पर गाने लगे थे। उनके निधन से उत्तराखंडी लोक संगीत को गहरी क्षति पहुंची है। हीरा सिंह राणा के गीतों में लोक संस्कृति रची बसी होती थी। वह अपनी गायकी के गजब के फनकार थे। उनके गीतों में लोक की महक उठती थी। उनके निधन के साथ उत्तराखंडी लोक संस्कृति के युग का अंत हो गया। 

हीरा सिंह राणा का विवाह बहुत देर में हुआ। पारिवारिक सदस्यों और शुभचिंतकों के बार बार आग्रह के बाद उन्होंने लगभग 52 वर्ष की उम्र में विवाह किया। वर्तमान में उनकी पत्नी विमला राणा व एक पुत्र है।

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