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ऐतिहासिक बग्वाल के साक्षी बनें 50 हजार लोग, एक क्लिक पर जानें पूरा इतिहास

हल्द्वानी: रक्षाबंधन के पावन पर्व के दिन खेले जानी वाली बग्वाल पूरे विश्व में विख्यात है। बग्वाल खेलने और देखने के लिए राज्यभर से लोग पहुंचते हैं। इस साल चंपावत जिले के बाराही धाम देवीधुरा में रक्षाबंधन के मौके पर खोलीखाड़ दुर्बाचौड़ मैदान में खेली गई बने। ताजा आंकड़ों के अनुसार करीब दस मिनट तक चले बग्वाल युद्ध में 122 लोग घायल हुए। जिन्हें प्राथमिक उपचार के बाद छुट्टी दे दी गई। ऐतिहासिक बगवाल को देखने के लिए पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी, पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री और सांसद अजय टम्टा, विधायक पूरन सिंह फर्त्याल, राम सिंह कैंडा सहित सैकड़ों लोग शामिल रहे।

देवीधुरा में खेले जानी वाली बग्वाल को लोग धार्मिक मान्यता का पवित्र रूप है। कहा जाता है कि एक वृद्धा के पौत्र का जीवन बचाने के लिए यहां के चारों खामों की विभिन्न जातियों के लोग आपस में युद्ध कर एक मानव के रक्त के बराबर खून बहाते हैं। क्षेत्र में रहने वाली विभिन्न जातियों में से चार प्रमुख खामों चम्याल, वालिक, गहरवाल और लमगडिय़ा के लोग पूर्णिमा के दिन पूजा अर्चना कर एक दूसरे को बगवाल युद्ध का निमंत्रण देते हैं।

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क्या है बग्वाल की मान्यता

बग्वाल का इतिहास कुछ प्रकार का है। पूर्व में यहां नरबलि देने की प्रथा थी, लेकिन जब चम्याल खाम की एक वृद्धा के एकमात्र पौत्र की बलि देने की बारी आई तो वंश खत्म होने के डर से उसने मां बाराही की तपस्या की। माता वृद्धा की तपस्या से प्रसन्न हो गई। वृद्धा की सलाह पर चारों खामों के मुखियाओं ने आपस में युद्ध कर एक मानव के बराबर रक्त बहाकर कर पूजा करने की बात स्वीकार ली और तबी से बग्वाल युद्ध खेला जाता है। बग्वाल में भाग लेने के लिए रणबांकुरों को विशेष तैयारियां करनी होती हैं। बग्वाल लाठी और रिंगाल की बनी ढालों से खेली जाती है। स्वयं को बचाकर दूसरे दल की ओर से फेंके गए फल, फूल या पत्थर को फिर से दूसरी ओर फेंकना ही बग्वाल कहलाता है।

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