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बेकार नहीं होगा ये प्लास्टिक बैग, मिट्टी में दबाने पर खुद ही बन जाएगा खाद

देहरादून: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐलान के बाद भारत में पॉलीथिन बैन को लेकर मुहिम शुरू हो गई है। इसके बाद से इस नारे को पूरे देश में जागरूकता मिशन के रूप में बढ़ाया जा रहा है। इसी क्रम में उत्तराखण्ड का स्टार्टअप पर्यावरण के लिए अच्छी खबर लेकर आया है। अब जिस बैग में आप सामान लाते हैं वो बेकार नहीं होगा बल्कि खाद बन जाएगा।बाजार से सामान लाने के लिए इस्तेमाल होने वाला बैग बेकार होने के बाद खाद बन जाएगा।

ऊधमसिंह नगर के काशीपुर में स्थापित स्टार्ट अप कंपनी ने जर्मनी तकनीक की तर्ज पर स्टार्च से कंपोस्टेबल बायोडिग्रेडेबल बैग तैयार किया है। इस बैग की खासियत है कि बेकार होने के बाद इसे मिट्टी में दबाने पर यह खाद के रूप में तब्दील हो जाती है। इसका इस्तेमाल पौधों और अन्य प्रकार की फसलों में किया जा सकता है। बैग में फल-सब्जी, घर का अन्य सामान लाने के साथ गरम खाना भी पैक किया जाता है। इस्तेमाल से पहले इसकी टेस्टिंग की गई, जिसमें यह खरा उतरा है और अब केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने भी मान्यता दी है। 

बता दें कि केंद्र और प्रदेश सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के लिए प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगाया है। इधर काशीपुर की एक स्टार्ट अप कंपनी ईको ग्रीन इंडस्ट्री ने इसका विकल्प तैयार किया है। जर्मनी तकनीक से मक्का, साबू दाना के स्टार्च से कंपोस्टेबल बायोडिग्रेडेबल (प्राकृतिक रूप से समाप्त होने वाला) बैग बनाए जा रहे हैं।बैग को इस्तेमाल करने के बाद बेकार होने पर इसे डंपिंग ग्राउंड या मिट्टी में दबाने पर तीन से छह माह के भीतर खाद तैयार हो जाती है। पर्यावरण प्रदूषण बोर्ड ने इस बैग को अनुमति दी है। वर्तमान में प्लांट की क्षमता प्रतिदिन 50 टन बैग बनाने की है। इसे बढ़ा कर 100 टन करने के लिए कंपनी ने जर्मनी से मशीनरी निर्यात की है। ईको ग्रीन इंडस्ट्री के निदेशक अमित जैन का कहना है कि पहले काशीपुर में पेपर का काम करते थे। प्लास्टिक बैग का विकल्प के लिए उन्होंने जर्मनी में कंपोस्टेबल बायोडिग्रेडेबल बैग बनाने का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद उत्तराखंड में पहली बार इस बैग को तैयार किया है। यह बैग पर्यावरण संरक्षण के मानकों पर खरा पाया गया है। बैग बेकार होने पर प्राकृतिक रूप से धुल कर उसकी खाद बन जाती है। जिसका इस्तेमाल घर के गार्डन या अन्य फसलों में इस्तेमाल कर सकते हैं। यह बैग अलग-अलग साइज में मौजूद है।

कंपोस्टेबल बायोडिग्रेडेबल बैग की कीमत 375 रुपये प्रति किलो है। इसपर 18 प्रतिशत जीएसटी लगेगा। कंपनी ने केंद्र सरकार के समक्ष में बैग पर लगे जीएसटी की दरों को घटाने की मांग की है। इससे बैग की कीमत कम होगी और लोग इसका इस्तेमाल ज्यादा करेंगे। मौजूदा वक्त में बाजार में नॉन बोवन बैग का इस्तेमाल किया जा रहा है जो सरकार द्वारा बैन है। इन बैग कपड़े का बैग कहा जाता है। इस स्टार्टअप की तारीफ शहरी विकास सचिव शैलेष बगोली ने की है। उन्होंने नगर निगम देहरादून के समक्ष इस बैग का प्रस्तुतीकरण दिया है।



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