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क्या है नंदा देवी महोत्सव और इसका इतिहास, जानें

नैनीताल: सरोवर नगरी में धार्मिक आस्था, श्रद्धा व विश्वास के प्रतीक नंदा देवी महोत्सव को श्रीराम सेवक सभा द्वारा 116वीं बार मनाया जा रहा है। महोसत्व का हिस्सा बन और माता का आर्शीवाद लेने के लिए सैकड़ो श्रद्धालू नैनीताल पहुंच रहे हैं। मां नंदा से जुड़े अनेक पर्व कुमाऊं और गढ़वाल में बड़े ही उत्साह से मनाए जाते हैं। मां नंदा के भाई और उनके अंगरक्षक लाटू देवता का पूजन सावन के महीने में हरेला पर्व के रूप में शिव-पार्वती के रूप में किया जाता है। मां नंदा को सुख समृद्धि देने वाली हरित देवी भी माना गया है। प्रदेश के अलग अलग क्षेत्रों में भगवती नंदा से जुड़े उत्सवों को मनाने की परंपरा है। भिटोली का पर्व भी नंदा से जुड़ी मान्यता का रूप माना जाता है। जिसमें भाई बहन के ससुराल जाकर उसे तरह तरह की चीजें भेंट करता है। मां नंदा देवभूमि उत्तराखंड की अगाध आस्था का पर्याय है। यही कारण है कि यहां कई नदियों, पर्वत श्रखलाओं व नगरों के नाम भी मां नंदा के नाम पर रखे गए हैं।

क्या कहता है इतिहास

नंदा देवी मंदिर सालों से देश ही नहीं विदेशी सैलानियों की आस्था का भी केंद्र है। मां नंदा को पार्वती का रूप माना जाता है। साल 1638-78 में चंद राजा बाज बहादुर चंद ने पंवार राजा को युद्ध में हराया और जीत के प्रतीक के रूप में बधाणकोट से नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा को लेकर यहां आए। जिसे उस समय मल्ला महल (वर्तमान कलक्ट्रेट परिसर) में स्थापित किया गया। इसके बाद कुमाऊं के तत्कालीन कमिश्वर ट्रेल ने नंदा की प्रतिमा को दीप चंद्रेश्वर मंदिर में स्थापित करवाया।

मां नंदा की सात बहनें मानी जाती हैं। जो लाता, द़्योराड़ी, पैनीगढ़ी, चादपुर, कत्यूर, अल्मोड़ा और नैनीताल में स्थित हैं। उत्तराखंड में नंदा देवी पर्वत शिखर, रूपकुंड, व हेमकुंड नंदा देवी के प्रमुख पवित्र स्थलों में एक हैं। कहा जाता है कि नंदा ने ससुराल जाते समय रूप कुंड में स्नान किया था। उनका सुसराल कैलाश में महेश्वर के यहा था। प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में शिव की पत्‍‌नी पार्वती को ही मां नंदा माना गया है। कैनोपनिषद में हिमालय पुत्री के रूप में हेमवती का उल्लेख मिलता है। हिंदू धर्मग्रंथों की बात करें तो इनमें देवी के अनेक स्वरूप गिनाए गए हैं। जिनमें शैलपुत्री नंदा को योग माया व शक्ति स्वरूपा का नाम दिया गया है।

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